Lekhika Ranchi

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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःउन्मादिनी


पवित्र ईर्ष्या सुभद्रा कुमारी चौहान


विमला अपने बगीचे में माली के साथ तरह-तरह के फूल और पत्तियों को पहिचान रही थी और उन्हीं के साथ खेल रही थी, क्योंकि उसके साथ खेलने के लिए उसके कोई सगे भाई-बहिन न थे। आज राखी का त्यौहार था। बारह महीने का दिन, सभी बच्चे अपने-अपने घरों में खेलकूद रहे थे। इस चहल-पहल में किसी को आज विमला की याद न रही; इसलिए वह बिलकुल अकेली पड़ गई थी।

अचानक उसकी दृष्टि, सड़क पर हरी-हरी साड़ियों से सजी हुई कुछ स्त्रियों और बालिकाओं पर पड़ी, जिनके हाथों में चाँदी के समान चमकती हुई थालियों में फूल-माला, फल-फूल और नारियल के साथ रंग-बिरंगी राखियाँ चमचमा रही थीं। उसी समुदाय में विमला की सखी चुन्नी भी थी। चुन्नी को देखकर विमला चुप न रह सकी, कौतूहलवश वह पुकार उठी-इतनी सज-सजा के कहाँ जा रही हो चुन्नी? यह थाली में क्या लिए हो चमकता हुआ?
चुन्नी विमला की अनभिज्ञता पर हँस पड़ी। बोली, इतना भी नहीं जानती विन्नो? आज राखी है न? हम लोग भगवान्‌ जी के मंदिर में पूजा करने जाती हैं, वहाँ से लौटकर फिर राखी बाँधेंगी।
'किसे बाँधेंगी राखी?” विमला ने उत्सुकता से पूछा। इस प्रश्न पर सब खिलखिला के हँस पड़ीं।

विमला शरमा गई, चुन्नी विमला की सहेली थी, अपनी सखी के ऊपर इस प्रकार सबका हँसना उसे भी अच्छा नहीं लगा; वह विमला के पास आकर बोली-विन्नो, अभी हम लोग भगवान्‌ जी की पूजा करके उन्हें राखी बाँधेंगी। फिर घर आकर अपने-अपने भाइयों को बाँधेंगी। तुम भी चलो न हमारे साथ!
-पर मैंने तो अभी अम्मा से पूछा ही नहीं।
-माँ से पूछकर मंदिर में आ जाना, यह कहकर चुन्नी चली गई।
विमला अपने हृदय में राखी बाँधने की प्रबल उत्कंठा लिए हुए बड़े उत्साह से माँ के पास आई। उसकी माँ, कमला, बैठी कुछ पकवान बना रही थी। वह नौ बरस की बालिका, घर में बिलकुल अकेली होने के कारण, अब भी निरी बालिका थी। वह माँ के गले में दोनों बाँहें डालकर पीठ पर झूलकर बोली, “मैं भी राखी बाँधूँगी माँ।'
'तू किसे राखी बाँधेगी बेटी?' माँ ने किंचित्‌ उदासी से पूछा।
'तुम जिसे कह दोगी माँ', विमला ने सरल भाव से कह दिया।
किंतु माँ की आँखों के आँसू रुक न सके। कुछ क्षणों में अपने को कुछ स्वस्थ पाकर कमला ने कहा-तेरी किस्मत में राखी बाँधना लिखा ही होता तो क्या चार भाइयों में से एक भी न रहता, राखी का नाम लेकर जला मत बेटी! चुप रह।

माँ के आँसुओं से विमला सहम-सी गई। कहाँ के, और किसके चार भाई, वह कुछ भी न समझी; हाँ वह इतना ही समझी कि राखी के नाम से माँ को दुःख होता है, इसलिए राखी का नाम अब माँ के सामने नहीं लेना चाहिए। पर राखी बाँधने की अपनी उत्कंठा को वह दबा न सकी। किसे राखी बाँधे और कैसे बाँघे; इसी उधेड़बुन में वह फिर बगीचे की ओर चली गई। फाटक के नजदीक चुपचाप बैठकर वह गीली मिट्टी के लड्डू, पेड़ा, गुझिया और तरह-तरह के पकवान बनाने लगी। किंतु राखी की समस्या अभी तक उसके सामने उपस्थित थी।

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